Harivansh Rai Bachchan Poems for Kids: Hello friends, Harivansh Rai Bachchan was an Indian poet, who was one of the most trained Hindi speaking poets of India in the 20th century. His long lyric poem “Madhushala”, published in 1935, brought him a different fame. The heart-touching work style leaves its impact on people of all ages even in the present times.
Dr. Harivansh Rai Bachchan ji has made an unforgettable contribution to Hindi literature. In today’s post we have brought Harivansh Rai Bachchan poems for kids, Harivansh Rai Bachchan poems for students, Harivansh Rai Bachchan Kavita in Hindi, Harivansh Rai Bachchan ki Kavita.
Contents
- 1 Harivansh Rai Bachchan Poems for Kids | हरिवंशराय बच्चन बाल-कविताएँ
- 2 1: खट्टे अंगूर (harivansh rai bachchan poems for students)
- 3 2: आ रही रवि की सवारी (harivansh rai bachchan poems for kids)
- 4 3: प्यासा कौआ (हरिवंशराय बच्चन बाल-कविताएँ)
- 5 4: काला कौआ (harivansh rai bachchan ki kavita)
- 6 5: चिड़िया और चुरूंगुन (famous poem of harivansh rai bachchan)
Harivansh Rai Bachchan Poems for Kids | हरिवंशराय बच्चन बाल-कविताएँ
1: खट्टे अंगूर (harivansh rai bachchan poems for students)
एक लोमड़ी खोज रही थी
जंगल में कुछ खाने को,
दीख पड़ा जब अंगूरों का
गुच्छा, लपकी पाने को ।
ऊँचाई पर था वह गुच्छा,
दाने थे रसदार बड़े,
लगी सोचने अपने मन में
कैसे ऊँची डाल चढ़े ।
नहीं डाल पर चढ़ सकती थी
खड़ी हुई दो टाँगों पर,
पहुंच न पाई, ऊपर उचकी
अपना थूथन ऊपर कर ।
बार-बार वह ऊपर उछली
बार-बार नीचे गिर कर
लेकिन अंगूरों का गुच्छा
रह जाता था बित्ते भर ।
सौ कोशिश करने पर भी जब
गुच्छा रहा दूर का दूर
अपनी हार छिपाने को वह
बोली, खट्टे हैं अंगूर ।
2: आ रही रवि की सवारी (harivansh rai bachchan poems for kids)
आ रही रवि की सवारी।
नव-किरण का रथ सजा है
कलि-कुसुम से पथ सजा है
बादलों-से अनुचरों ने
स्वर्ण की पोशाक धारी
आ रही रवि की सवारी।
विहग, बंदी और चारण
गा रही है कीर्ति-गायन
छोड़कर मैदान भागी
तारकों की फ़ौज सारी
आ रही रवि की सवारी
चाहता, उछलूँ विजय कह
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है,
राह में बनकर भिखारी
आ रही रवि की सवारी।
3: प्यासा कौआ (हरिवंशराय बच्चन बाल-कविताएँ)
आसमान में परेशान-सा
कौआ उड़ता जाता था
बड़े जोर की प्यास लगी थी
पानी कहीं न पाता था ।
उड़ते उड़ते उसने देखा
एक जगह पर एक घड़ा
सोचा अन्दर पानी होगा
जल्दी-जल्दी वह उतरा
उसने चोंच घड़े में डाली
पी न सका लेकिन पानी
पानी था अन्दर, पर थोड़ा
हार न कौए ने मानी
उठा चोंच सें कंकड़ लाया
डाल दिया उसको अन्दर
बडे गौर से उसने देखा
पानी उठता कुछ ऊपर
फिर तो कंकड़ पर कंकड़ ला
डाले उसने अन्दर को
धीरे-धीरे उठता-उठता
पानी आया ऊपर को
बैठ घड़े के मुँह पर अपनी
प्यास बुझाई कौए ने
मुश्किल में मत हिम्मत हारो
बात सिखाई कौए ने ।
4: काला कौआ (harivansh rai bachchan ki kavita)
उजला-उजला हंस एक दिन
उड़ते-उड़ते आया
हंस देखकर काका कौआ
मन-ही-मन शरमाया
लगा सोचने उजला-उजला
में कैसे हो पाऊं
उजला हो सकता हूँ
साबुन से में अगर नहाऊँ
यही सोचता मेरे घर पर
आया काला कागा
और गुसलखाने से मेरा
साबुन लेकर भागा
फिर जाकर गड़ही पर उसने
साबुन खूब लगाया
खूब नहाया, मगर न अपना
कालापन धो पाया ।
मिटा न उसका कालापन तो
मन-ही-मन पछताया
पास हंस के कभी न फिर वह
काला कौआ आया ।
5: चिड़िया और चुरूंगुन (famous poem of harivansh rai bachchan)
छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात
और सुनी जो पत्ते हिलमिल
करते हैं आपस में बात
माँ, क्या मुझको उड़ना आया
नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया
डाली से डाली पर पहुँचा
देखी कलियाँ, देखे फूल
ऊपर उठकर फुनगी जानी
नीचे झूककर जाना मूल
माँ, क्या मुझको उड़ना आया
नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया
कच्चे-पक्के फल पहचाने
खए और गिराए काट
खने-गाने के सब साथी
देख रहे हैं मेरी बाट
माँ, क्या मुझको उड़ना आया
नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया
उस तरू से इस तरू पर आता
जाता हूँ धरती की ओर
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर
माँ, क्या मुझको उड़ना आया
नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया
मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोइ अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार
माँ, क्या मुझको उड़ना आया
आज सुफल हैं तेरे डैने
आज सुफल है तेरी काया
दोस्तों आशा करता हूँ कि आज के इस लेख में दी गई हरिवंशराय बच्चन बाल-कविताएँ, harivansh rai bachchan poems for kids & students, harivansh rai bachchan poems in hindi, harivansh rai bachchan poems, bachchan ji ki kavita जरुर पसंद आया होगा
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