Kisko Naman Karu Main Bharat Poem: नमस्कार दोस्तों, रामधारी सिंह दिनकर अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भाव को जनमानस की चेतना में नई स्फूर्ति प्रदान करने वाले कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें हिंदी साहित्य के कालखंड में ‘छायावादोत्तर काल’ का प्रमुख कवि माना जाता है, इसके साथ ही उन्हें प्रगतिवादी कवियों में भी उच्च स्थान प्राप्त हैं।
रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में गद्य और पद दोनों ही धाराओं में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। वह एक कवि, पत्रकार, निबंधकार होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। क्या आप जानते हैं रामधारी दिनकर जी को ‘क्रांतिकारी कवि’ के रूप में भी ख्याति मिली हैं।
उन्होंने ‘रश्मिरथी’, ‘कुरूक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी रचनाओं में अपनी जिस काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया, वह हिंदी साहित्य जगत में अविस्मरणीय रहेगा। आइए अब हम ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित रामधारी सिंह दिनकर कि प्रसिद्ध कविता kisko naman karu mein bharat poem, किसको नमन करूँ मैं भारत कविता, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “किसको नमन करूँ मैं भारत आपके साथ साझा किया है
Kisko Naman Karu Main Bharat Poem | राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “किसको नमन करूँ मैं भारत
तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ?
भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ?
तू वह, नर ने जिसे बहुत ऊँचा चढ़कर पाया था;
तू वह, जो संदेश भूमि को अम्बर से आया था।
तू वह, जिसका ध्यान आज भी मन सुरभित करता है;
थकी हुई आत्मा में उड़ने की उमंग भरता है ।
गन्ध -निकेतन इस अदृश्य उपवन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं?
वहाँ नहीं तू जहाँ जनों से ही मनुजों को भय है;
सब को सब से त्रास सदा सब पर सब का संशय है ।
जहाँ स्नेह के सहज स्रोत से हटे हुए जनगण हैं,
झंडों या नारों के नीचे बँटे हुए जनगण हैं ।
कैसे इस कुत्सित, विभक्त जीवन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं ?
तू तो है वह लोक जहाँ उन्मुक्त मनुज का मन है;
समरसता को लिये प्रवाहित शीत-स्निग्ध जीवन है।
जहाँ पहुँच मानते नहीं नर-नारी दिग्बन्धन को;
आत्म-रूप देखते प्रेम में भरकर निखिल भुवन को।
कहीं खोज इस रुचिर स्वप्न पावन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं ?
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं !
खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं !
दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं !
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं !
दोस्तों मुझे आशा है कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “किसको नमन करूँ मैं भारत, kisko naman karu mein bharat poem, किसको नमन करूँ मैं भारत कविता आपको जरुर पसंद आई होगी
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