3 Best Poem on Mahashivratri in Hindi: Hello friends, Shivratri falling on Krishna Chaturdashi of Phalgun month is called Mahashivratri.
According to Vedic Hindu astrology, on the Chaturdashi date of Phalgun Krishna Paksha, the moon is closer to the Sun. At the same time, the Moon in the form of life unites with the Sun in the form of Shiva. Therefore, there is a tradition to worship Shiva on this Chaturdashi. With full faith and devotion, this ultimate eternal truth can be achieved by surrendering to Lord Shiva, which devotees strive to achieve on this day.
At the time of Pralay, on this very day, at the time of Pradosh, Lord Shiva, while performing Tandav, incinerates the universe with the flame of the third eye. Therefore it is also called Mahashivratri or Jalratri. Bholenath is also worshiped on this day to attain the gentleness of Lord Shiva.
Lord Shankarji’s marriage also took place on this day. Therefore, Shankar’s procession is taken out at night. To get the blessings of both Shiva and Shakti, their marriage festival is celebrated with great pomp and devotion.
Shivratri is Bodhotsav. This is a festival in which there is self-realization. This knowledge awakens that we all are a part of Shiva and are under his protection.
It is believed that at the beginning of the creation, on this day at midnight, Lord Shiva was incarnated from formless to corporeal form (from Brahma to Rudra). To get some part of this energy of Mahadev, efforts are made to please him.
It is told in the Ishaan Samhita that on the night of Phalgun Krishna Chaturdashi, the Adi Dev Lord Shri Shiva appeared in the form of a linga with the radiance equal to millions of suns. This day of Lord Shiva’s appearance is celebrated with devotion.
On the night of Mahashivratri, the northern hemisphere of the planet Earth is situated in such a way that the flow of human internal energy is naturally upward. It is a day when nature helps man to reach his spiritual peak.
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Contents
3 Best Poem on Mahashivratri in Hindi | महाशिवरात्रि पर कविता
1: जटा में जिनके बसती माँ गंगा (Mahashivratri par Kavita)
जटा में जिनके बसती माँ गंगा, गले में रहते शेषनाग
शिव का आशीर्वाद जिसे भी मिलता, उसके बड़े ही भाग।
अनाथों के कहलातें नाथ, जय बाबा भोलेनाथ
विपत्ति में जो भी नाम ले शिव का, कृपा करते भोलेनाथ।
सभी जंतुओं के स्वामी अधिनायक, पूरे जगत के प्रतिपालक
हँस-हँस कर किया विष पान, शेषनाग के हैं गल धारक
झूम-झूम बजाते डमरू का राग, भर दी माँ पार्वती की माँग
करते जब तांडव नृत्य भोलेनाथ, होकर उन्मत्त पीते भाँग।
भुजाओं से निकले जिनके भुजंग, डमरू से मधुर तरंग
गूँज उठती जब ॐ की ध्वनि, जटाओं से निकलती माँ गंग
मस्तक पर शोभता त्रिपुण्ड, चंद्रशेखर जग में कहलातें हैं
आज महाशिवरात्रि को सब, शिव को दूध से नहलातें हैं।
पार्वती इनकी भार्या, अशोकसुंदरी इनकी कहलाती सुता
कार्तिक गणेश दो पुत्र इनके, नहुष इनके कहलातें जमाता
चलो मिलकर शिवरात्रि मनाएं, चन्दन रोली से पूजा की थाल सजाएँ
आज तो है महाशिवरात्रि, चलो सब मिलकर महाभिषेक के साक्षी बन जाएँ।
फाल्गुन माह, कृष्ण पक्ष, तिथि है यह चतुर्दशी, है आज महाशिवरात्रि
शिव भक्तों का है इस दिन उपवास, प्रभु करेंगे उनकी हर इच्छा पूरी
बारह घंटों के चार प्रहर में होंगी, भगवान शिव की विधिवत अर्चना
“ॐ नमः शिवाय” का करते जाप, तिल, चावल, घी से करते आराधना।
इसी पावन दिन को हुए प्रकट, लेकर प्रभु शिवलिंग का स्वरूप
इसी पावन तिथि को हुआ संपन्न, प्रभु शिव और माँ पार्वती का विवाह अभिरूप
इसी दिन धारण किया प्रभु ने, परम ब्रह्म का साकार रूप
अविवाहित कन्याएँ करती उपवास, कल्पना करती वर का शिव के प्रतिरूप।
करेंगे इस दिन सभी दम्पति मिलकर, शिवलिंग का जलाभिषेक
सुख की मनोकामना करते हुए, करेंगे प्रभु शिव का रुद्राभिषेक
शिव मन्त्रों का होगा जाप, “ॐ नमः शिवाय” होगा हर ओर गुंजायमान
लगाकर चन्दन का लेप, शिवलिंग का होगा पंचामृत से स्नान।
इस महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर, लेवें हम सभी एक प्रण
जीवन को बनाएँगे शुद्ध, सरल, छोड़कर सारे व्यसन
सनातनी विचारों की बहाएँगे सरिता, पवित्रता की बहाएँगे जलधार
सारे कदाचारों का करेंगे परित्याग, अपनाएँगे जीवन में पूर्ण सदाचार।
नव भारत का भी करें जलाभिषेक, करेगा राष्ट्र प्रगति अतिरेक
राष्ट्रवाद का फहरा दें परचम, राष्ट्र का करें रुद्राभिषेक
सौहार्द और सद्भाव का बजेगा संगीत, समरसता का गूँजेगा तराना
मिट जाए सारे क्लेश और द्वेष, हो चहूँओर प्रीत और सदभावना।
2: शिव पराकाष्ठा हैं (Poem on Mahashivratri in Hindi)
शिव पराकाष्ठा हैं
राग की, वैराग्य की
स्थिरता की, दृढ़ता की
ध्यान की, विज्ञान की
ज्ञान के प्रकाश की
वे समेटे हैं
प्रेम को, क्रोध को
शांति को, भ्रांति को
त्याग को, विश्वास को
भक्ति को, शक्ति को
शिव स्त्रोत हैं
प्राण का, प्रमाण का
धर्म का, कर्म का
आचार का, विचार का
अंधकार के विनाश का
उनमे समाए हैं
गीत भी, संगीत भी
विष भी, अमृत भी
समय भी , विनय भी
आरम्भ भी अंत भी
लोग कहते है, शिव संहारक हैं,
वो संहार करते हैं,अंत करते हैं
परंतु वह भूल जाते हैं कि
शंकर अंत करके एक नई शुरुआत का आरम्भ करते हैं
वे सृजन भी करते हैं, संहार भी करते हैं
ज़रूरत पड़ने पर चमत्कार भी करते हैं
शिव ब्रह्मा भी हैं वेद भी
जीवन का हैं भेद भी
शिव नारी भी हैं, पुरुष भी
माया भी हैं, मोक्ष भी
वो निर्गुण भी हैं, सगुण भी
सात्विक भी है, तामसिक भी
ध्वनी भी हैं, दृष्टि भी
श्वास भी हैं, मुक्ति भी
वो साधन भी हैं साधना भी
चिंता भी हैं, और चिंतन भी
वो अंदर भी हैं, बाहर भी
और मुझ में भी हैं, तुझ में भी।
3: शिव शक्ति का विवाह (Maha Shivratri Poem)
शोर मची है गली गली
सबको ही ये खबर है
जब बनेंगे दूल्हा भोलेनाथ
आज आई फिर वही रात है
चमक रहें हैं चंद्र देव
भूत प्रेत भी मग्न है
नाचते हुए नंदी के संग
भोलेनाथ की निकली बारात है
सज रहीं हैं गौरी
उन पर शोभ रहा 16 शृंगार है
उन्हें छेड़ रही सखियाँ उनकी
हो रही खुशियों की बरसात है
हो रहा शिव शक्ति का विवाह
प्रकृति दे रही बधाई है
महाशिवरात्रि इस संसार को मिली
सबसे बड़ी सौगात है
तो दोस्तों आशा करता हूँ कि ये कवितायेँ महाशिवरात्रि पर कविता, Maha Shivratri Poem, Mahashivratri par Kavita आपको जरुर पसंद आई होंगी तो अगर पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरुर शेयर करें
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